यूपी खबरिया: उत्तर प्रदेश का राजनीतिक इतिहास (Uttar Pradesh Political History) प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक एक दिलचस्प यात्रा है। इसमें हम देखेंगे कि कैसे अलग-अलग कालखंडों में इस राज्य ने समाज, संस्कृति और राजनीति को प्रभावित किया। इस वीडियो में हम उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास की प्रमुख घटनाओं और आंदोलनों आदि प्रमुख मुद्दों पर बात करेंगे।

उत्तर प्रदेश, भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा राज्य, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस राज्य का राजनीतिक इतिहास बहुत ही गहरे और जटिल घटनाक्रमों से भरा हुआ है। यह राज्य हमेशा से भारतीय राजनीति का केंद्र रहा है, और यहां के नेताओं और आंदोलनों ने न केवल उत्तर भारत, बल्कि पूरे देश की राजनीति को आकार दिया है।

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इस लेख में इन मुद्दों पर करेंगे बात…
1. प्राचीन उत्तर प्रदेश: सत्ता और संस्कृति का केंद्र
2. मध्यकाल: मुस्लिम शासन और संघर्ष
3. आधुनिक काल: ब्रिटिश शासन और राष्ट्रीय संघर्ष
4. स्वतंत्रता के बाद: कांग्रेस का प्रभुत्व और समृद्धि
5. मंडल कमीशन और समाजवादी राजनीति का उदय
6. भाजपा का उदय और उत्तर प्रदेश की राजनीति
7. उत्तर प्रदेश की राजनीति आज: एक नई दिशा

1. प्राचीन उत्तर प्रदेश: सत्ता और संस्कृति का केंद्र
उत्तर प्रदेश का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र वैदिक सभ्यता से लेकर मौर्य, गुप्त और अन्य शासकों के अधीन रहा। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक सम्राट अशोक ने इस क्षेत्र को अपने साम्राज्य का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया था। इसके बाद गुप्त साम्राज्य के दौरान यह क्षेत्र शिक्षा, कला और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बन गया।

प्राचीन उत्तर प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक केंद्रों में काशी (वाराणसी), मथुरा, और अयोध्या प्रमुख रहे हैं। अयोध्या को राम का जन्मस्थल माना जाता है, और यहाँ से हिंदू धर्म और राजनीति दोनों पर गहरी छाप पड़ी। मथुरा और काशी भी धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल रहे हैं।

2. मध्यकाल: मुस्लिम शासन और संघर्ष
मध्यकाल में उत्तर प्रदेश में मुस्लिम शासकों का दबदबा था। दिल्ली सल्तनत और बाद में मुग़ल साम्राज्य ने इस राज्य पर शासन किया। अकबर के समय में उत्तर प्रदेश एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र बन गया। मथुरा, आगरा, लखनऊ और इलाहाबाद जैसे शहरों ने उस समय के मुस्लिम शासन की झलक दिखाई।

लेकिन यहाँ का राजनीतिक परिदृश्य संघर्षों से भी भरा हुआ था। हिन्दू-मुस्लिम संघर्ष, शाही दरबारों में सत्ता की लड़ाई, और क्षेत्रीय रजवाड़ों की बढ़ती शक्ति ने इस समय के राजनीतिक वातावरण को जटिल बना दिया। अयोध्या और काशी के धार्मिक संघर्ष इस काल की महत्वपूर्ण घटनाएँ रहीं, जो आज भी राजनीतिक मुद्दों के रूप में जीवित हैं।

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3. आधुनिक काल: ब्रिटिश शासन और राष्ट्रीय संघर्ष
ब्रिटिश शासन के दौरान उत्तर प्रदेश भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बन गया। 1857 का विद्रोह, जिसे भारतीय इतिहास में पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है, उत्तर प्रदेश के मेरठ और कानपुर से शुरू हुआ था। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन को हिला दिया और भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता की ललक को जागृत किया।

उत्तर प्रदेश के प्रमुख नेता जैसे लाला लाजपत राय, चंद्रशेखर आज़ाद, और गणेश शंकर विद्यार्थी ने इस राज्य को स्वतंत्रता संग्राम के केंद्र के रूप में प्रस्तुत किया। खासकर गोरखपुर, कानपुर और इलाहाबाद जैसे शहरों ने इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह राज्य भारतीय राजनीति की दिशा को आकार देने में महत्वपूर्ण बन गया।

4. स्वतंत्रता के बाद: कांग्रेस का प्रभुत्व और समृद्धि
स्वतंत्रता के बाद, उत्तर प्रदेश ने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहले आम चुनाव (1952) में कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में शानदार जीत हासिल की, और जवाहरलाल नेहरू की सरकार में राज्य को प्रमुख स्थान मिला। इस समय राज्य में औद्योगिकीकरण, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई गईं। लखनऊ और कानपुर जैसे शहरों ने व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में प्रगति की।

लेकिन यह समय एक और संघर्ष का था। कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी राजनीति, जातिवाद और क्षेत्रीय राजनीति ने राज्य की राजनीति में नया मोड़ दिया। 1960 और 1970 के दशक में उत्तर प्रदेश में कई बार मुख्यमंत्री बदलते रहे। कांग्रेस के प्रभुत्व के बावजूद राज्य में सामजिक और राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे।

5. मंडल कमीशन और समाजवादी राजनीति का उदय
1980 और 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश में समाजवादी और पिछड़े वर्गों की राजनीति में तेजी आई। 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशों के बाद राज्य में सामाजिक न्याय की राजनीति ने जोर पकड़ा। मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी (BSP) की मायावती ने इस समय के प्रमुख राजनीतिक दलों के रूप में अपनी पहचान बनाई।

हर रंग-ओ-रूप में ग़म और ख़ुशी की दास्तान,
यहाँ के हर मोड़ पे बिखरी है सियासत की पहचान।

मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी विचारधारा को फैलाया और उत्तर प्रदेश में एक नई राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे। मायावती की BSP ने दलित समुदाय के हितों की पैरवी की और राज्य में कई बार सरकार बनाई। इन दोनों नेताओं ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातिवाद, समाजवाद और आरक्षण जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी।

6. भाजपा का उदय और उत्तर प्रदेश की राजनीति
1990 के दशक के अंत में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रवेश किया और 1991 के विधानसभा चुनावों में बड़ी सफलता हासिल की। भाजपा ने धर्म और संस्कृति के मुद्दों को आधार बना कर अपनी राजनीति की शुरुआत की। राम मंदिर आंदोलन ने इस पार्टी को एक नई दिशा दी, और उत्तर प्रदेश में भाजपा का राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ा।

लखनऊ और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा ने एक सशक्त जन समर्थन प्राप्त किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की। 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद भाजपा ने राज्य में अपनी सत्ता को और मजबूत किया।

7. उत्तर प्रदेश की राजनीति आज: एक नई दिशा
आज उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई परतें हैं। यहां पर सत्ता का संघर्ष कभी भी शांत नहीं रहता, और राजनीतिक बदलाव तेजी से होते हैं। भाजपा, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी सभी राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। भाजपा के बाद, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं ने कई बार गठबंधन की कोशिशें की हैं। 2022 में योगी आदित्यनाथ ने फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, और भाजपा ने एक बार फिर राज्य में अपनी सत्ता बनाए रखी।

राज्य की राजनीति में जातिवाद, धर्म, और विकास जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। लेकिन आज की राजनीति में इन मुद्दों के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और सामाजिक न्याय जैसे प्रश्न भी महत्व पा रहे हैं।

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