अनुराग जायसवाल/संवाददाता

महराजगंज: उड़ीसा के जगन्नाथपुरी की तर्ज पर महराजगंज में भी हर साल रथ यात्रा निकलती है, जिसमें हजारों की संख्या में नेपाल से भी श्रद्धालु शामिल होते हैं।

पूर्वांचल के इस मठ से भारत के साथ नेपाल के लोगों की भी आस्था जुड़ी है। यह परंपरा दस-बीस साल नहीं बल्कि दो सदी से भी ज्यादा समय से चली आ रही है। यह मठ महराजगंज जिले में स्थित है। सिसवा क्षेत्र के बड़हरा महंथ स्थित प्राचीन भगवान जगन्नाथ मंदिर (मठ) का जगन्नाथ पुरी से सीधा संबंध है।

मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

साल 1786 में स्थापित इस मठ के बारे में बताया जाता है कि 237 वर्ष पूर्व जगन्नाथपुरी, उड़ीसा से वैष्णव संत रामानुज दास अपने शिष्यों संग नारायण मुक्ति धाम नेपाल जाते समय यहां विश्राम के लिए रुके थे। रात्रि विश्राम के दौरान भगवान जगन्नाथ ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देते हुए इस स्थल पर निवास करने की इच्छा जाहिर की। भगवान ने वैष्णव रामानुज दास को विग्रह (प्रतिमा) लाकर स्थापित करने का आदेश दिया। उस समय यह क्षेत्र पड़ोसी राष्ट्र नेपाल के अधीन होने के साथ दुर्गम और काफी भयावह था।

भगवान के दर्शन के बाद इसे पवित्र स्थल मान जब रामानुज यहां तपस्या में लीन हो गए तो इसकी जानकारी निचलौल के राजा महादत्त सेन को हुई। राजा ने स्वयं आकर रामानुज का दर्शन किया और तपस्या का कारण जान भगवान की प्रतिमा स्थापना के लिए जमीन देते हुए मंदिर बनवाने का आदेश दिया। इसके बाद संत रामानुज दास ने जगन्नाथ पुरी की पैदल यात्रा कर वहां से विग्रह लाकर मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की।

यहां भगवान के दर्शन करने से मिलती है पुनर्जन्म से मुक्ति: मंदिर के वर्तमान आठवें मठाधीश महंत संकर्षण रामानुज दास के अनुसार स्कंद पुराण में वर्णित है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है। इस मंदिर में चन्दन यात्रा, स्वान यात्रा, रथ यात्रा, झूलनोत्सव, विजयादशमी, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, श्रीराम जन्मोत्सव, वामन जयंती आदि उत्सव मनाए जाते हैं।

मंदिर के पूर्व मठाधीशों द्वारा प्रथम वैष्णवद्वार, द्वितीय जगन्नाथद्वार, तृतीय रामकृष्णद्वार, चतुर्थ रंगद्वार, पंचम त्रिविक्रमद्वार, षष्टम नारायण द्वार तथा सप्तम सुदर्शन द्वार का नामकरण कर भव्यता प्रदान की गई अगला भगवान की प्रतिमा का समय-समय बदलाव कर वर्ष 1993 के दूसरी बार जुलाई 2007 में स्थापित किया गया है। लेख

झूलनोत्सव में होती है भक्तों की भारी भीड़:

धार्मिक पवाँ के अलावा भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर में ऐप पर पढ़ें झूलनोत्सव का विशेष महत्त्व है। श्रावण शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक झूलनोत्सव मनाया जाता है। इसमें भगवान की भव्य प्रतिमा को गर्भ गृह में रत्न जड़ित चांदी के सिंहासन पर रखा जाता है। सिर पर चांदी का मुकुट उसके ऊपर चांदी की छतरी के साथ उन्हें मखमली रेशमी वस्त्रों व विभिन्न आभूषणों से सजाया जाता है। पांच दिन तक भजन-कीर्तन, महाआरती के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। पूर्णिमा को मध्य रात्रि में विशेष आरती के उपरांत भगवान को पुनः गर्भगृह में स्थापित किया जाता है।

हर साल धूमधाम से निकलती है रथयात्रा:

भगवान जगन्नाथ के प्राचीन मठ से 237 वर्षों से रथयात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रत्येक वर लेख भगवान की रथ यात्रा निकलती है। रथयात्रा की खासियत यह है उड़ीसा के जगन्नाथपुरी की तर्ज पर यहां भी भगवान जगन्नाथ के साथ उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र भी रथ पर आसीन रहते हैं। परंपरानुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को भगवान को सहस्त्र कराया जाता है। इसके बाद भगवान अस्वस्थ हो जाते हैं। मंदिर में गुप्त पूजा-अर्चना के अलावा कोई पूजा नहीं होती है। इसके पश्चात पुनः आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान स्वस्थ होते हैं। इसके बाद उनकी विधिवत पूजा-अर्चना, श्रृंगार कर रथ यात्रा निकाली जाती है।

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